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तारा मिलान की विधी – कुण्डली मिलान भाग – 6

कुण्डली मिलान भाग – 6
तारा मिलान विधी

पिछले अंक मे हमने तारा मिलान के कारण की जानकारी प्राप्त की।
जन्म नक्षत्र से गिनती करने पर
1st नक्षत्र जन्म तारा कहा जाता है
2nd नक्षत्र संपत तारा कहा जाता है
3rd नक्षत्र विपत्त तारा कहा जाता है
4thनक्षत्र क्षेम तारा कहा जाता है
5th नक्षत्र प्रत्यारी तारा कहा जाता है
6th नक्षत्र साधक तारा कहा जाता है
7th नक्षत्र वीं बाधा तारा कहा जाता है
8th नक्षत्र मित्र तारा कहा जाता है
9th नक्षत्र अति मित्र तारा कहा जाता है।

अब 10th नक्षत्र 1st के रूप में माना जाता है
11th नक्षत्र 2nd नक्षत्र
…………… ..
27th नक्षत्र 9th नक्षत्र है।

इसप्रकार नक्षत्र के 3 सेट मिलता है। इस सेट को अन्य जगह भी उपयोग किया जाता है।

विपत्त तारा, प्रत्यारी तारा और बाधा तारा को जातक के लिए अशुभ माना जाता है।

तारा मिलान के लिए जातक और जातिका के जन्म नक्षत्र से अलग अलग सारणी उपरोक्त विधी द्वारा बना ले।

यदि जातक जातिका के जन्म नक्षत्र एक दूसरे के सारणी मे विपत्त, प्रत्यारी या बाधा तारा हो तो यह तारा दोष का निर्माण करते है, यह अशुभ माना जाता है।

यदि आप इस लम्बी विधी से बचना चाहते है तो सरल विधी है कि आप वर के जन्म नक्षत्र से गिनती की शुरुआत करते हुए कन्या नक्षत्र तक जाए और कन्या के नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक गिनती करे यदि दोनो से 3rd, 5th, 7th नक्षत्र हो तो तारा दोष का निर्माण करते है। जब गिनती 9 से अधिक हो तो 9 से भाग दे और शेष को मिलान करे।

तारा मिलान मे अंक आंवटन नीचे दिये गये सारणी के अनुरुप करे।
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अगले अंक मे हम योनि मिलान के बारे मे जानकारी प्राप्त करेगे ।

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