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कुंडली के अष्टम भाव में तृतीयेश का प्रभाव

कुंडली के अष्टम भाव में तृतीयेश का प्रभाव

1) कुंडली के अष्टम भाव में तृतीयेश का प्रभाव जानने के लिए सर्वप्रथम हम अष्टम भाव और तृतीय भाव के नैसर्गिक कारक के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करेंगे। तृतीय भाव का स्वामी स्वयं के भाव से छठे स्थान में है, अतः प्रथम भाव के स्वामी का छठे भाव में क्या फल होता है, हम इसके बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे।

2) तृतीय भाव और अष्टम भाव एक दूसरे से षडाष्टक हैं। तृतीय भाव का स्वामी अष्टम भाव में शुभ नहीं माना जा सकता है। यह बहुत सारे नकारात्मक प्रभाव देने में सक्षम होता है।

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3) तृतीय भाव का स्वामी अष्टम भाव में स्थित हो तब जातक कंधे, स्पाइनल कॉर्ड, कान, हाथ इत्यादि के बीमारी से ग्रसित हो सकता है। यदि तृतीय भाव का स्वामी अष्टम भाव मे बुरी तरह पीड़ित हो तब जातक गंभीर और लाइलाज बीमारी से ग्रसित हो सकता है।

4) अष्टम भाव ब्लेमिंग से संबंधित होता है। यदि तृतीय भाव का स्वामी अष्टम भाव में स्थित हो तब जातक झूठे आरोपों से गिर सकता है। जातक अष्टम भाव की प्रकृति के अनुसार गंभीर आरोप का भी सामना कर सकता है, जैसे हत्या और इसी प्रकार के गंभीर अपराध। जातक झूठे आरोपों के कारण दुख का भी सामना करता है।

5) तृतीय भाव छोटे भाई बहन से संबंधित होता है। यदि तृतीय भाव का स्वामी अष्टम भाव में स्थित हो तब, जातक के छोटे भाई बहन से संबंध उत्तम नहीं होते हैं। अष्टम भाव एक दुःस्थान है। अतः जातक और जातक के भाइयों के बीच शत्रुता भी हो सकती है। अष्टम भाव पैतृक संपत्ति से संबंधित होता है। अतः जातक और जातक के भाइयों के मध्य पैतृक संपत्ति को लेकर भी विवाद हो सकता है। यदि तृतीय भाव का स्वामी अष्टम भाव में पीड़ित हो तब छोटे भाई का स्वास्थ्य उत्तम नहीं होता है और मृत्यु का भी कारण हो सकता है। साधारण अवस्था में छोटे भाई को स्वास्थ्य से संबंधित समस्या हो सकती है या अचानक से किसी घटना दुर्घटना का शिकार हो सकता है।

6) अष्टम भाव वैवाहिक जीवन से भी संबंधित होता है। तृतीय भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तब यह वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है।

7) अष्टम भाव दुर्भाग्य से भी संबंधित होता है। यदि तृतीय भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तब जातक दुर्भाग्य का भी सामना करता है। जातक का जीवन में उतार-चढ़ाव आते जाते रहते हैं, अर्थात जातक स्मूथ लाइफ नहीं जी पाता है।

8) तृतीय भाव हमारी क्षमता से संबंधित होता है। अतः तृतीय भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तो जातक में खुद की क्षमता के प्रति आत्मविश्वास नहीं हो पाता है। जातक अपने शत्रु से भयभीत रह सकता है। जातक अपनी क्षमता के अनुरूप कोई कार्य नहीं कर सकता है।

9) तृतीय भाव का स्वामी अष्टम भाव के स्वामी के साथ अष्टम भाव में स्थित हो, तब यह जातक के लिए उत्तम नहीं माना जा सकता है। जातक भय से पीड़ित रह सकता है। जातक अपने शत्रुओं से परेशान रह सकता है। जातक की शारीरिक क्षमता उत्तम नहीं होगी। जातक अपने जीवन के बुरे समय का सामना करेगा। जातक के अपने भाइयों के साथ भी उत्तम संबंध नहीं होते हैं।

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