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कुंडली के तृतीय भाव में चतुर्थेश का प्रभाव

कुंडली के तृतीय भाव में चतुर्थेश का प्रभाव

1) कुंडली के तृतीय भाव में चतुर्थेश का प्रभाव जानने के लिए सर्वप्रथम हम चतुर्थ भाव और तृतीय भाव के नैसर्गिक कारक के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करेंगे। चतुर्थ भाव का स्वामी स्वयं के भाव से तृतीय स्थान में स्थित है, अतः प्रथम भाव के स्वामी का द्वादश भाव में क्या फल होगा हम इसके बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे।

2)चतुर्थ भाव का स्वामी स्वयं के भाव से द्वादश स्थान में स्थित है। अतः यह चतुर्थ भाव के नैसर्गिक कारक के लिए शुभ नहीं माना जा सकता है।

3) चतुर्थ भाव माता का कारक भाव होता है। चतुर्थ भाव का स्वामी स्वयं के भाव से द्वादश भाव में स्थित है, अतः यह माता के लिए शुभ नहीं माना जा सकता है ।यदि तृतीय भाव में स्थित चतुर्थेश पीड़ित हो तब, माता को स्वास्थ्य संबंधित समस्या हो सकती है। यदि तृतीय भाव में स्थित चतुर्थेश बुरी तरह पीड़ित हो और चंद्रमा भी पीड़ित हो तब, जातक के माता की मृत्यु की भी संभावना होती है। जातक और जातक के माता एक दूसरे से अलग रह सकते हैं। जातक और जाता के माता के मध्य वैचारिक मतभेद भी हो सकता है।

4) चतुर्थ भाव शिक्षा का कारक होता है। यदि चतुर्थ भाव का स्वामी तृतीय भाव में स्थित हो तब जातक की शिक्षा में समस्या संभव होती है। जातक की स्टडी में रुकावट या जाकर को अच्छी शिक्षा नहीं प्राप्त होना या जातक का पढ़ाई में मन नहीं लगना, इन सब की संभावना होती है। यदि चतुर्थ भाव का स्वामी तृतीय भाव में शुभ स्थिति मे हो तब जातक को उत्तम शिक्षा प्राप्त होती है या जातक अपनी पढ़ाई के लिए अपनी मातृभूमि से दूर किसी स्थान पर जा सकता है।

5) तृतीय भाव छोटी यात्राओं से संबंधित होता है। यदि चतुर्थ भाव का स्वामी तृतीय भाव में स्थित हो तब जातक की छोटी यात्राएं संभव होती है। जातक अपने मातृभूमि से दूर किसी स्थान पर थोड़े समय के लिए निवास कर सकता है। जातक विदेश जा सकता है। जातक जन्म स्थान से दूर अपनी पढ़ाई के लिए जा सकता है। यदि चौथे भाव का स्वामी तृतीय भाव में सप्तमेश या उसके साथ संबंध स्थापित करें, तब जातक विदेश में निवास कर सकता है या जातक अपनी शिक्षा के लिए विदेश जा सकता है।

6) चौथा भाव माइंड से संबंधित है। चौथा भाव का स्वामी यदि तीसरा भाव में स्थित हो तब जातक के मन में कन्फ्यूजन हो सकता है। जातक चंचल मन वाला हो सकता है। यदि तृतीय भाव में स्थित चतुर्थेश शुभ स्थिति में हो, तब जातक सक्रिय होता है।साधारण रूप से अगर हम बात करें तब चतुर्थ भाव का स्वामी तीसरा भाव मे मानसिक स्थिति के लिए शुभ नहीं माना जा सकता है।

7) चतुर्थ भाव सुख का कारक होता है। चतुर्थ भाव का स्वामी स्वयं के भाव से द्वादश भाव में स्थित है, अतः जातक अपने जीवन में सुख प्राप्त करने में परेशानी का सामना करेगा। जातक अपने स्वयं के मेहनत के बदौलत अपने जीवन में सुख प्राप्त करेंगा। जातक को वाहन के सुख, प्रॉपर्टी का सुख, नौकर चाकर के सुख का आनंद लेने में कहीं न कहीं समस्या उत्पन्न होती रहेगी।

8) तृतीय भाव स्वयं के मेहनत से संबंधित होता है। चतुर्थ भाव कंफर्ट से संबंधित होता है। यदि चतुर्थ भाव का स्वामी तृतीय भाव में स्थित हो यह जातक को आलसी प्रवृत्ति का बनाता है। जातक के शारीरिक क्षमता के लिए अच्छा नहीं माना जा सकता जातक मानसिक और शारीरिक रोगों से ग्रसित हो सकता है।

9) तृतीय भाव संवाद से संबंधित होता है। यदि चतुर्थ भाव का स्वामी तृतीय भाव में स्थित हो तब जातक संवाद कुशल हो सकता है। जातक दयालु प्रवृत्ति का हो सकता है तथा जातक का स्वभाव ही अच्छा होता है।

10) यदि चतुर्थ भाव का स्वामी तृतीय भाव के स्वामी के साथ तृतीय भाव में स्थित तब, जातक स्वाभाविक रूप से यात्रा प्रिय होता है। यदि चतुर्थ भाव का स्वामी तृतीय भाव में पीड़ित हो तब जातक के सुख के लिए, शिक्षा के लिए, माता के लिए, शुभ नहीं माना जा सकता है। चतुर्थ भाव का स्वामी शुभ स्थिति में हो तब यह जातक को कल्पना से संबंधित कार्यों में सफलता दिलाता है। जातक कई लाभकारी यात्राएं करेगा। जातक विवाह के पश्चात भाग्यशाली हो सकता है। जातक धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति होगा।

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