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कुंडली के द्वितीय भाव में षष्ठेश का प्रभाव

कुंडली के द्वितीय भाव में षष्ठेश का प्रभाव

1)कुंडली में द्वितीय भाव में षष्ठेश का प्रभाव जानने के लिए सर्वप्रथम हम छठे भाव और द्वितीय भाव के नैसर्गिक कारक के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करेंगे। छठे भाव का स्वामी स्वयं के भाव से नवम स्थान में है, अतः प्रथम भाव के स्वामी का नवम भाव में क्या फल होता है, हम इसके बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे।

2) छठा भाव दुःस्थान होता है, जो जातक के जीवन में परेशानियों और बाधाओं का कारक होता है। यदि छठे भाव का स्वामी द्वितीय भाव में स्थित हो तब यह धन के लिए शुभ नहीं माना जा सकता है। लेकिन अष्टम भाव और द्वितीय भाव दोनों अर्थ त्रिकोण से संबंधित होते हैं। अतः यदि छठे भाव का स्वामी द्वितीय भाव में शुभ स्थिति में हो तब जातक उत्तम धन अर्जित करेगा। यदि शुभ स्थिति में ना हो तब यह किसी भी प्रकार से अच्छा नहीं माना जा सकता है।

3) छठा भाव विवाद, लड़ाई- झगड़े से संबंधित होता है। यदि छठा भाव का स्वामी द्वितीय भाव में स्थित है तब जातक के अपने परिवार या नजदीकी रिश्तेदार या नजदीकी मित्र से संबंध अच्छे नहीं होते हैं। जातक के अपने परिवार या पारिवारिक मित्रों से विवाद हो सकते हैं। जातक और जातक के परिवार के सदस्यों के मध्य कानूनी या लीगल प्रॉब्लम भी हो सकता है। अतः छठा भाव का स्वामी द्वितीय भाव में पारिवारिक सुख के लिए अच्छा नहीं माना जा सकता है।

4)द्वितीय भाव धन से संबंधित होता है। छठा भाव शत्रु, रोग, कानूनी समस्या इत्यादि से संबंधित होता है। यदि छठा भाव का स्वामी द्वितीय भाव में स्थित हो तब जातक को अपने शत्रु के कारण धन के नाश की संभावना बनती है। जातक पारिवारिक संपत्ति को लेकर कानूनी विवाद का सामना कर सकता है। जातक कानून से संबंधित प्रोफेशन में हो सकता है जैसे जज वकील या कोर्ट का स्टाॅप इत्यादि।

5) छठा भाग रोग से संबंधित होता है। दूसरा भाव मारक होता है। यदि छठा भाव का स्वामी द्वितीय भाव में स्थित हों तब कुंडली में मारक प्रभाव बढ़ जाते हैं। जातक रोग बीमारी से परेशान हो सकता है। जातक को बीमारी के कारण धन का नाश की संभावना बन सकती है। यदि छठे भाव स्वामी द्वितीय भाव में बुरी तरह पीड़ित हो तब जातक लाइलाज बीमारी से ग्रसित हो सकता है या जातक की बीमारी से मृत्यु भी हो सकती है।

6) द्वितीय भाव नेत्र से संबंधित होता है। यदि छठे भाव का स्वामी द्वितीय भाव में स्थित हो तो जातक नेत्र रोग से पीड़ित रह सकता है। यदि नेत्र कारक ग्रह सूर्य, चंद्रमा, शुक्र इत्यादि भी कुंडली में पीड़ित हो तब जातक के नेत्र ज्योति क्षीण होने की संभावना बढ़ जाती है।

7)द्वितीय भाव वाणी से संबंधित होता है। यदि छठे भाव का स्वामी द्वितीय भाव में स्थित हो तब जातक झूठा हो सकता है। जातक तर्क वितर्क करने वाला व्यक्ति हो सकता है। यदि छठा भाव का स्वामी द्वितीय भाव में शुभ स्थिति में हो तब जातक की तर्कशक्ति अति उत्तम होती है। यदि छठा भाव का स्वामी द्वितीय भाव में शुभ स्थिति में ना हो तब जातक बेवजह के कुतर्क करता रहता है। यदि वाणी का कारक बुध भी कुंडली में पीड़ित हो तब जातक को स्पीच से रिलेटेड समस्या हो सकती है।

8)यदि छठा भाव का स्वामी कुंडली में शुभ स्थिति में हो तब जातक धन के मामले में भाग्यशाली होता है। जातक के पास उत्तम धन होता है, लेकिन जातक कंजूस होता है। जातक किसी भी प्रकार का खर्च करने को उत्सुक नहीं होता है। यदि सही जगह पर खर्च करना हो तब पर भी वह खर्च नहीं करता है। जातक गैरकानूनी और अनैतिक तरीके से धन अर्जित कर सकता है। जातक कर्ज से पीड़ित रह सकता है या कर्ज के कारण अपना संचित धन का भी नुकसान करा बैठता है।

9) द्वितीय भाव संस्कार से संबंधित होता है। यदि छठा भाव का स्वामी द्वितीय भाव में स्थित हो तब जातक के संस्कार उत्तम नहीं होते हैं।

10)छठे भाव का स्वामी द्वितीय भाव में स्थित हो तो जातक के वैवाहिक जीवन के लिए भी उत्तम नहीं माना जाता है। जातक की पत्नी का स्वास्थ्य मध्यम हो सकता है या जातक को अपनी पत्नी से विवाद या अलगाव की संभावना रहती है। जातक के पत्नी की मृत्यु की भी संभावना होती है।

11)यदि छठा भाव का स्वामी द्वितीय भाव के स्वामी के साथ द्वितीय भाव में स्थित हो तब यह एक मारक योग बनाता है। जातक को स्वास्थ्य संबंधित समस्या हो सकती है। जातक की पारिवारिक जिंदगी अच्छी नहीं हो सकती है। जातक के अपने मित्रों या पारिवारिक सदस्यों के साथ अनबन की संभावना होती है। जातक के खाने पीने का आदत अच्छा नहीं होता है। जातक को अपने शत्रु के कारण धन नाश की भी संभावना होती है। जातक को दातों या आंखों से संबंधित समस्या हो सकती है। यदि द्वितीय भाव का स्वामी छठे भाव में शुभ स्थिति में हो तब बुरे प्रभाव कम होते हैं और जातक के अच्छी धन लाभ की संभावना बनती है।

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